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भारतीय संस्कृति कि सच्चाई

10/8/2025

भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां सांस्कृतिक विविधता है हमारी ये पुरातन संस्कृति हमे और हमारे समाज को आपस में जोड़कर रखती है, लेकिन अगर मैं आपसे कहूं कि ये संस्कृति और रीति-रिवाज आज के समय में हमें आगे बढ़ने कि बजाय पीछे कि ओर धकेल रही है तो ये बात सुनकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? मैं समझ सकता हूं जो लोग प्राचीनता के अनुरागी है वो लोग बिना कुछ सोचे मेरा विरोध करेंगे मगर समस्या ये नही है, समस्या ये है कि ये लोग आधुनिकता के विरोधी है |

हमें लगता है कि हम स्वतंत्र हैं मगर ऐसा नहीं है क्योंकि रूढ़िवादी विचारधारा ने हमें जकड़ रखा है और जब हम इन विचारधाराओं से स्वतंत्र होने की बात करते हैं तो हमारे बुजुर्ग लोग हमे डराने लगते है, कि समाज के लोग क्या कहेंगे? लेकिन इसमें बुजुर्गों कि कोई गलती नहीं है क्योंकि वे सभी बचपन से इन्ही विचारधाराओं के बीच पले बढ़े हैं |

हमारा देश एक ऐसा सांस्कृतिक देश है जहां बचपन से लेकर युवावस्था तक रूढ़िवादी विचारों को हम पर थोपा जाता है और बदले में हमसे ये उम्मीद की जाती है कि हम आगे बढ़े, कामयाब हो जाएं और ऐसा नहीं है कि कामयाब होने के बाद सब कुछ बदल जाएगा, ये बदलाव सिर्फ भौतिक साधनों तक ही सीमित है, और जब व्यक्ति एक बार कामयाब हो जाता है तो फिर से वही प्रक्रियाएं दोहराई जाती है, शादी के नाम पर फिजूलखर्ची, अंधविश्वास, रीति-रिवाज और परंपराएं, व्यक्ति आजीवन इसी चक्र में फंसा रहता है |

ये दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन हम आज भी धार्मिक कर्मकांडो में में उलझे हुए हैं न तो हम आगे बढ़ पा रहे हैं न ही कुछ नया सोच पा रहे हैं | इन संस्कृतियों और रीति-रिवाजों में हम इतने उलझ चुके हैं कि हम शरीर और बंधनों से परे कभी सोच ही नहीं पाते, इतना ही नहीं जो धन-संपत्ति हमारे हमारे और प्राकृतिक विकास में लगना चाहिए वो धन धार्मिक कर्मकांडो और अन्धविश्वास में खर्च हो जाता है, इसकी वजह से मानसिक और शारीरिक विकास के लिए पैसा कम पड़ जाता है |

हमारे भारत में जब एक बच्चे का जन्म होता है तो उसके जन्म के लगभग 6 महीने बाद उसके नामकरण में एक समारोह रखा जाता है जिसे नामकरण संस्कार कहा जाता है इस नामकरण संस्कार में लगभग 50 हजार से 1 लाख रुपए तक खर्च हो जाता है ये ध्यान देने वाली बात है क्योंकि इसमें उस बच्चे का कोई फायदा नहीं है |

जब ये बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है तो मां-बाप अपने बच्चों को सिखाते है कि बेटा भगवान को मानो उनकी पूजा करो और यहीं से हमे कुंठित बनाया जाता है, मै आपके विचारों का विरोध नहीं कर रहा हूं ये जीवन आपका है आप किसी भी विचार को स्वतंत्र रूप से स्वीकार कर सकते है और अपना सकते है, बल्कि मैं तो उन विचारों का विरोध कर रहा हूं जो हमारी जिज्ञासा और चेतना को समझे बिना ही सीधे हम पर रूढ़िवादी विचारों को थोपा जाता है |

हमें लगता है कि हमने काफी तरक्की कि है और ये बात काफी हद तक सही भी है लेकिन ये बात भी सच है कि हमने पैसों के नाम पर प्रकृति को सिर्फ नुकसान ही पहुंचाया है ये धर्म ये संस्कृति आज के समय में सिर्फ पैसा कमाने साधन है और कुछ नहीं, हां मन को थोड़ी सी संतुष्टि तो मिलती है लेकिन उसका नुकसान हमारे साथ-साथ प्रकृति को भी होता है, लोगों कि मानसिकता इतनी कुंठित हो चुकी है कि वे बेजान चीजों कि पूजा करते है, उन्हें सर्वोपरि मानते है और जिसमें प्राण है , भावनाएं है , जिन्हें पीड़ा होती है हम उसे जीवनभर तकलीफ देते है और हम अपने आप को धार्मिक और संस्कारी मानते है , मूर्ति पूजा और संस्कृति के नाम पर हमने सिर्फ कचरा फैलाया है |

जब हम इन चीजों को रोकने की कोशिश करते हैं तो धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचती है, मैं उन लोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं जो धार्मिक कर्मकांडो में लगे रहते है, आप जो सोचते है क्या में वास्तव वो आपका ही विचार है या फिर किसी और के विचारों को आपने गोद लिया है?

जब आप किसी और के विचारों को अपनाते है तो आप अप्रत्यक्ष रूप से किसी और के जीवन को स्वयं के भीतर जीने की कोशिश करते है, इसलिए विचारों को अपनाने से पहले स्वयं से एक सवाल पूछिए, क्या मैं खुद को जानता हूँ? क्योंकि जिन विचारों को आप अपनाने वाले है वो विचार आपके लिए निर्माणकारी भी हो सकता है और विनाशकारी भी |