Welcome

गुटका, तंबाकू और सिगरेट एक कड़वी सच्चाई

10/30/20251 min read

भारत में गुटका, तंबाकू और सिगरेट का सेवन एक गहरी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या बन चुका है। यह सिर्फ एक लत नहीं, बल्कि एक ऐसी आदत है जिसने हमारी पीढ़ियों को अंदर से खोखला कर दिया है। सुबह की पहली खुराक से लेकर रात के आख़िरी कश तक, लोग अनजाने में अपने शरीर के साथ जंग लड़ रहे हैं। आज भारत में तंबाकू का बाजार अरबों डॉलर का है स्मोक्लेस टॉबैको यानी गुटका और खैनी का उद्योग अकेले ही लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का है, जबकि सिगरेट और बीड़ी समेत पूरा तंबाकू उद्योग इससे कई गुना बड़ा है। यह “ज़हर का बिज़नेस” अब देश की अर्थव्यवस्था का भी हिस्सा बन चुका है, जिसमें लाखों लोग काम करते हैं और करोड़ों लोग अपनी सेहत गंवाते हैं।

भारत में तंबाकू के सेवन की दर दुनिया में सबसे अधिक में से एक है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS-2) के अनुसार, भारत में लगभग 26.7 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। इनमें से करीब 20 करोड़ लोग स्मोक्लेस टॉबैको जैसे गुटका, खैनी, जर्दा या पान मसाला खाते हैं। यह आंकड़े यह दिखाते हैं कि तंबाकू अब किसी एक वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं रहा। छोटे गाँवों से लेकर बड़े शहरों तक, हर गली, हर नुक्कड़ और हर दुकान पर इसका असर दिखता है। यह एक ऐसी लत है जो धीरे-धीरे समाज के ताने-बाने में घुल चुकी है और सबसे डरावनी बात यह है कि बहुत से लोग इसे “सामान्य” मानने लगे हैं।

सरकार को तंबाकू उद्योग से हर साल बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त होता है। सिगरेट, बीड़ी और गुटका पर लगने वाले टैक्स, एक्साइज और जीएसटी से सरकार को अरबों रुपए की आमदनी होती है। 2023–24 के आँकड़ों के अनुसार, भारत सरकार की कुल टैक्स आमदनी का लगभग 2% हिस्सा तंबाकू उत्पादों से आता है। लेकिन यह “कमाई” उतनी मीठी नहीं जितनी दिखती है। क्योंकि जितना पैसा सरकार को टैक्स से मिलता है, उससे कहीं ज़्यादा पैसा स्वास्थ्य सेवाओं, कैंसर अस्पतालों, और सफाई में खर्च करना पड़ता है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक तरफ राजस्व बढ़ता है, तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य-व्यवस्था और पर्यावरण की कीमत भी चुकानी पड़ती है।

हर साल भारत में 100 अरब से ज़्यादा सिगरेट पी जाती हैं, और उनके बचे हुए फिल्टर और बट्स सड़कों, नालियों और नदियों में फेंक दिए जाते हैं। इनसे 22,000 टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता है, जो मिट्टी और पानी में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में घुल जाता है। यही नहीं, लाखों गुटके के पाउच हर दिन दीवारों, फुटपाथों और गलियों में बिखरे मिलते हैं। यह गंदगी सिर्फ देखने में बुरी नहीं लगती, बल्कि साफ-सफाई पर अरबों रुपए का बोझ डालती है। अगर दुनिया के विकसित देशों के उदाहरण देखें, जैसे ब्रिटेन या अमेरिका, तो वहाँ सिर्फ तंबाकू-कचरे की सफाई पर सालाना सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च होते हैं। भारत में यह आंकड़ा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन हमारे देश में फैले कचरे को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि यह खर्च भी बहुत बड़ा होगा।

जो लोग रोज गुटका खाते हैं, वे यह नहीं समझ पाते कि वे सिर्फ सेहत नहीं, अपनी जेब भी खोखली कर रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति रोज़ औसतन तीन पाउच गुटका खाता है और हर पाउच की कीमत दस रुपए है, तो वह साल में करीब ₹11,000 सिर्फ गुटका चबाने में खर्च कर देता है। कुछ लोग इससे भी ज़्यादा सेवन करते हैं, जिससे उनका सालाना खर्च ₹30,000 तक पहुँच सकता है। यह रकम कई घरों के लिए एक साल की बचत या बच्चों की पढ़ाई का खर्च बन सकती थी। यह आदत धीरे-धीरे परिवारों को आर्थिक रूप से भी तोड़ देती है।

स्वास्थ्य के मोर्चे पर इसका असर और भी भयावह है। गुटका और सिगरेट दोनों ही कई प्रकार के कैंसर के मुख्य कारण हैं। मुँह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, मसूड़ों की सूजन और दाँतों का झड़ना ये सब तंबाकू की देन हैं। भारत में हर साल लाखों लोग तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से मरते हैं। अस्पतालों के कैंसर वार्ड में भर्ती ज़्यादातर मरीज गुटका या तंबाकू सेवन से पीड़ित होते हैं। वे न सिर्फ अपनी ज़िंदगी खोते हैं, बल्कि अपने परिवार को कर्ज और दुःख के दलदल में छोड़ जाते हैं।

इन सबके अलावा एक और बड़ी समस्या है सार्वजनिक छवि और स्वच्छता। भारत की दीवारें लाल थूक से सनी दिखाई देती हैं, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर सिगरेट-बट्स बिखरे पड़े होते हैं, और यह दृश्य किसी भी विदेशी नागरिक के मन में नकारात्मक प्रभाव छोड़ देता है। जब विदेशी पर्यटक या निवेशक भारत आते हैं और ऐसी गंदगी देखते हैं, तो वे यही सोचते हैं कि हम अपने देश और पर्यावरण की परवाह नहीं करते। यह हमारे पर्यटन, व्यापार और देश की प्रतिष्ठा पर भी असर डालता है।

गुटका और सिगरेट का यह कारोबार न केवल शरीर को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि देश की छवि, अर्थव्यवस्था और संस्कृति तक को प्रभावित करता है। यह गरीबों की गरीबी बढ़ाता है, युवाओं की क्षमता नष्ट करता है और समाज में गंदगी फैलाता है। अगर भारत को एक स्वस्थ, स्वच्छ और जागरूक राष्ट्र बनाना है, तो इस लत से मुक्ति ज़रूरी है। इसके लिए केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता बदलनी होगी। हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि तंबाकू “कूल” नहीं, बल्कि “किलर” है। जब हम खुद से यह संकल्प लेंगे कि न हम तंबाकू का सेवन करेंगे, न दूसरों को करने देंगे तभी सच में बदलाव आएगा।

1. Global Adult Tobacco Survey (GATS‑2) India Fact Sheet 2016-17 PDF: https://www.mohfw.gov.in/sites/default/files/GATS-2%20FactSheet.pdf

2. India Smokeless Tobacco Market Report - TechSci Research: https://www.techsciresearch.com/news/23497-india-smokeless-tobacco-market.html

3. “Why India must act on cigarette butts and sachets” - The New Indian Express article: https://www.newindianexpress.com/xplore/2025/Sep/19/why-india-must-act-on-cigarette-butts-and-sachets

4. “Cigarette butts are the most littered form of plastic in India” https://www.allindiansmatter.in/cigarette-butts-are-the-most-littered-form-of-plastic-in-india/

5. India Tobacco Country Profile TobaccoTactics: -https://www.tobaccotactics.org/article/india-country-profile/