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डिजिटल युग में समय और पैसे की बर्बादी क्यों?
10/15/2025


आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां पूरी दुनिया डिजिटल हो चुकी है। हर देश अपने कामों को ऑनलाइन सिस्टम से जोड़ चुका है स्कूल, कॉलेज, बैंक, यहां तक कि अस्पताल तक अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चलते हैं। लेकिन जब बात हमारे भारत की आती है, तो तस्वीर कुछ अलग नज़र आती है। यहां आज भी “कागज़ का पन्ना” ही सबसे बड़ा सबूत माना जाता है। कोई सरकारी काम बिना फाइल, दस्तावेज़ या मुहर के पूरा ही नहीं होता। ये वही सिस्टम है जो किसी आम आदमी का दो घंटे का काम दो महीने में पूरा करता है और उस दौरान उसके समय के साथ-साथ पैसों की भी जमकर बर्बादी होती है।
भारत में अगर कोई सरकारी दफ्तर का चक्कर काट चुका है, तो वो जानता होगा कि “डिजिटल इंडिया” का सपना ज़मीनी हक़ीक़त से कितना दूर है। लंबी कतारें, फाइलों के ढेर, हर टेबल पर मुहर और सिग्नेचर का इंतज़ार यही असली सिस्टम है। कई बार एक साइन या एक स्टैंप के लिए इंसान को कई दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जहां ऑनलाइन एक क्लिक में काम निपट सकता है, वहां महीनों का समय और सैकड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं।
यही नहीं, कोर्ट-कचहरी की बात करें तो ये सिस्टम और भी दर्दनाक हो जाता है। यहां इंसाफ़ पाने की जंग कई बार पूरी ज़िंदगी खा जाती है। लोग उम्मीद में सालों-साल कोर्ट के चक्कर काटते रहते हैं, तारीख़ पर तारीख़ मिलती है, लेकिन फ़ैसला नहीं। ऐसा नहीं है कि भारत में संसाधन नहीं हैं, लेकिन हमारे सिस्टम की जड़ें इतनी पुरानी हैं कि उसमें बदलाव करना आसान नहीं रहा।
अब अगर नज़र डालें भारत की राजनीति पर, तो वहां भी हाल कुछ अलग नहीं। हर पाँच साल में चुनाव आते हैं, और हर बार चुनाव प्रचार पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। पोस्टर, बैनर, रैलियाँ, गाड़ियाँ सब कुछ दिखावे और वोट बटोरने का ज़रिया बन जाता है। सोचने वाली बात ये है कि ये पैसा आता कहाँ से है? यही वो पैसा है जो आम जनता अपने टैक्स के रूप में सरकार को देती है। ये जनता की मेहनत, पसीने और उम्मीदों का पैसा है जिसे जनता के भले में लगना चाहिए, लेकिन अफ़सोस की बात है कि वही पैसा राजनीतिक खेलों में खर्च कर दिया जाता है।
भारत एक ऐसा देश है जहां टैलेंट की कमी नहीं, संसाधनों की कमी नहीं बस सिस्टम की समझ और नीयत की कमी है। जब तक हम अपने काम करने के तरीक़ों को नहीं बदलेंगे, तब तक “डिजिटल इंडिया” सिर्फ़ एक नारा बनकर रह जाएगा। हमें ये समझना होगा कि तकनीक तभी कारगर है जब उसका इस्तेमाल ईमानदारी और सादगी से किया जाए। वरना हम चाहे जितने भी ऐप बना लें या योजनाएँ शुरू करें, असली बदलाव तब तक नहीं आएगा जब तक हर सरकारी दफ्तर, हर नेता और हर नागरिक इस बात को नहीं समझता कि समय और पैसा दोनों अनमोल हैं, और इन्हें बर्बाद करना हमारे भविष्य को बर्बाद करना है।